No ‘Child Porn’, Say ‘Child Sexually Abusive And Exploitative Material’: Supreme Court

The Supreme Court in a landmark judgment on Monday said that the term that the term “Child Pornography” should not be used and instead “child sexually abusive and exploitative material” should be used for defining such cases.

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक ऐतिहासिक निर्णय में कहा कि “बाल अश्लील सामग्री” (Child Pornography) शब्द का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। इसके बजाय, “बाल यौन शोषणकारी और शोषणात्मक सामग्री” (child sexually abusive and exploitative material) शब्द का उपयोग किया जाना चाहिए। शीर्ष अदालत ने सभी अदालतों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे मामलों में “बाल अश्लील सामग्री” का जिक्र करने के बजाय “बाल यौन शोषणकारी और शोषणात्मक सामग्री” शब्द का उपयोग करें।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री को देखना और उसे संग्रहित करना भारतीय कानून के तहत एक गंभीर अपराध है। इसे पॉक्सो (Protection of Children from Sexual Offences) अधिनियम और सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम के तहत अपराध माना जाएगा। इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद, यह स्पष्ट हो गया है कि बच्चों से संबंधित किसी भी प्रकार की अश्लील सामग्री को देखना या संग्रह करना कानूनी तौर पर सख्त अपराध की श्रेणी में आता है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

सुप्रीम कोर्ट ने संसद से यह भी सुझाव दिया है कि पॉक्सो अधिनियम में संशोधन लाया जाए ताकि “बाल अश्लील सामग्री” को “बाल यौन शोषणकारी और शोषणात्मक सामग्री” के रूप में परिभाषित किया जा सके। न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला ने फैसला सुनाते हुए कहा, “हमने यह सुझाव दिया है कि इस संदर्भ में एक अध्यादेश लाया जा सकता है। हमने सभी अदालतों से अनुरोध किया है कि वे अपने आदेशों में ‘बाल अश्लील सामग्री’ का जिक्र न करें।”

यह निर्णय एक महत्वपूर्ण मोड़ है, जो न केवल भारतीय न्यायिक प्रणाली में बदलाव लाने का काम करेगा, बल्कि समाज को भी बच्चों की सुरक्षा के प्रति और अधिक जागरूक बनाएगा। शीर्ष अदालत के इस निर्णय ने मद्रास उच्च न्यायालय के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें एक 28 वर्षीय व्यक्ति के खिलाफ चल रहे आपराधिक मामले को खारिज कर दिया गया था। उस व्यक्ति पर आरोप था कि उसने अपने मोबाइल फोन पर बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री डाउनलोड की और उसे देखा। सुप्रीम कोर्ट ने आज इस आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को फिर से बहाल कर दिया है।

इस ऐतिहासिक निर्णय का हिस्सा बने मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने इसे दुनिया का पहला ऐसा मामला बताया है, जिसमें बच्चों से संबंधित यौन शोषण और शोषणात्मक सामग्री को इतने विस्तार से न्यायालय द्वारा संभाला गया है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का यह कहना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह निर्णय न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में बच्चों की सुरक्षा से संबंधित कानूनों के लिए एक मिसाल कायम करेगा।

यह निर्णय उन लोगों के लिए भी एक सख्त चेतावनी है, जो किसी भी प्रकार से बच्चों के शोषणकारी सामग्री में शामिल होते हैं। यह समाज के उन वर्गों को भी एक कड़ा संदेश देता है जो तकनीकी साधनों का गलत इस्तेमाल कर बच्चों की मासूमियत को शोषण के लिए इस्तेमाल करते हैं।

आज के समय में, जब इंटरनेट और डिजिटल साधनों का उपयोग बहुत व्यापक हो गया है, इस तरह के निर्णय अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। बच्चों से संबंधित अश्लील सामग्री को न केवल देखना, बल्कि उसे संगृहीत करना और फैलाना भी एक गंभीर अपराध है। यह निर्णय समाज के सभी वर्गों को जागरूक करेगा कि बच्चों की सुरक्षा को किसी भी हालत में नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता है और इसके खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जाएगी।

यह फैसला इस बात की ओर भी इशारा करता है कि न्यायपालिका बच्चों की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील है और वह समाज के हर कोने में बच्चों के खिलाफ हो रहे शोषण को रोकने के लिए कड़े कदम उठा रही है। इसके साथ ही, यह निर्णय सरकार और अन्य संबंधित अधिकारियों के लिए भी एक प्रेरणा बनेगा कि वे बच्चों की सुरक्षा के लिए कानूनों को और सख्त बनाएं और उन्हें सही ढंग से लागू करें।

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय एक नई दिशा दिखाता है, जिसमें बच्चों की सुरक्षा को सर्वोपरि माना जाएगा और हर तरह के शोषण के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। न्यायपालिका के इस निर्णय से यह भी उम्मीद की जा सकती है कि समाज में बच्चों के खिलाफ होने वाले अपराधों को लेकर एक नई सोच विकसित होगी और लोग बच्चों की सुरक्षा को गंभीरता से लेंगे।

इस फैसले से यह भी स्पष्ट है कि भविष्य में अगर कोई व्यक्ति बच्चों से संबंधित किसी प्रकार की अश्लील सामग्री के साथ पकड़ा जाता है, तो उसे कठोर सजा का सामना करना पड़ेगा। यह समाज के उन तत्वों को भी नियंत्रित करेगा जो डिजिटल प्लेटफार्मों का गलत उपयोग कर बच्चों का शोषण करने का प्रयास करते हैं। इस फैसले के बाद, यह उम्मीद की जा सकती है कि बच्चों की सुरक्षा को लेकर और अधिक सख्त कानून बनाए जाएंगे और बच्चों के खिलाफ अपराध करने वालों को कोई राहत नहीं मिलेगी।

इस फैसले ने यह भी साबित कर दिया है कि भारतीय न्याय प्रणाली न केवल बच्चों की सुरक्षा के प्रति जागरूक है, बल्कि वह समाज में व्याप्त शोषण के खिलाफ सख्त कदम उठाने के लिए पूरी तरह से तैयार है।

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